संपादकीय


ब्राह्मण आरक्षण के मोहताज नहीं, पर उपेक्षा का दुःख


ब्राह्मण किसी से कम नहीं हैं...ज्ञान में, पराक्रम में, परिश्रम में और उपकार में विप्रजन कभी किसी से पीछे नहीं रहे। ब्राह्मण धर्म का प्रचार तो करते ही हैं, साथ ही धर्मसम्मत जीवन जीने की कला भी जनमानस को सिखाते हैं। धर्म परायण होने के बावजूद ब्राह्मण कभी अन्य धर्म या उनके मानने वालों के प्रति वैमनस्यता नहीं फैलाते हैं, बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम् की वैदिक भावना के साथ लोगों को, समाज को, देश को और फिर पूरी दुनिया को शांतिपूर्ण तरीके से जोड़कर रखने की कामना करते हैं। एक छोटे से प्रणाम के बदले वे न केवल धन, स्वास्थ्य और यशकीर्ति से परिपूर्ण रहने का आशीष दे देते हैं, बल्कि परलोक में भी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। ऐसे विप्रजन के प्रति घृणा का वातावरण बनाने वाले लोग आखिर कौन हैं? कौन हैं जो ब्राह्मणों के प्रति वैमनस्यता फैला रहे हैं? स्वयं किसी भी परिस्थिति में रहे लेकिन पूरे देश की मंगलकामना करने का काम केवल और केवल ब्राह्मण ही कर सकता है। संभवतः ब्राह्मणों की उदारता, सहिष्णुता और धर्मपरायणता को कुछ लोगों ने उनकी कमजोरी समझ रखी है, लेकिन ऐसे लोग भूल जाते हैं कि ब्राह्मण ही है जो शस्त्र और शास्त्र दोनों का उपयोग करना जानता है। जब धर्म-सम्मत और शास्त्र-सम्मत हल नहीं निकल पाए तो ब्राह्मण समाज, देश और समूचे ब्रह्मांड के हित में शस्त्र भी उठा सकता है। भगवान परशुराम, आचार्य चाणक्य, आर्य भट्ट जैसे कई नाम हैं जिन्होंने अपने कार्य और खोजों से भारत को नई ऊंचाइयां दीं। इस प्रकार इन महापुरुषों ने भारत की संस्कृति को सशक्त करने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। युगों-युगों से ब्राह्मण समाज अपने ज्ञान के बलबूते पर श्रेष्ठ कार्य करता रहा है, लेकिन वह कभी धन के पीछे नहीं भागा, यही कारण है कि उसके पास ज्ञान तो रहा लेकिन वह धनसम्पन्न नहीं बन पाया। ऐसे में राजनीतिक लोगों ने दलित और अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए ब्राह्मणों को सर्व सम्पन्न घोषित करते हुए आरक्षण के नाम पर उन्हें सरकारी सुविधाओं और नौकरी से वंचित कर दिया। आश्चर्य तो यह है कि दल कोई भी हो, कोई भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के बजाय जातिगत आरक्षण का पक्ष लेकर वोट की राजनीति कर रहे हैंवैसे यह भी सच है कि ब्राह्मण युवा कभी आरक्षण के मोहताज नहीं रहे लेकिन आरक्षण और सुविधाओं से वंचित रखे जाने का उन्हें दुख तो है ही।