भगवान श्रीराम के सदैव निकट रहने के लिए हनुमानजी ने पूरे शरीर पर मला था सिंदूर
-शंकराचार्य मठ इंदौर के प्रभारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने दी जानकारी
इंदौर।
व्यक्ति जब सरल हो जाता है तो उसे भगवान की भक्ति और निकटता प्राप्त होती है। हनुमानजी ने सिंदूर लगाकर यह संदेश दिया कि भगवान की प्रसन्नता के लिए भगवान को अच्छा लगने वाले कार्य ही करने चाहिए। वीरों में वीर हनुमानजी का जो भी स्मरण कर लेता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं, क्योंकि भगवान की भक्ति करने वाले की सेवा करने वाले से भी भगवान प्रसन्न रहते हैं और वे सदैव उसकी रक्षा करते हैं।
शंकराचार्य मठ इंदौर के प्रभारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने यह जानकारी हनुमानजी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सोमवार को दी। उल्लेखनीय है कि चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पर अमरता प्राप्त हनुमानजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार यह तिथि हनुमानजी के प्रिय दिवस मंगलवार को आ रही है। महाराजश्री ने इस अवसर पर बताया कि हनुमानजी को सिंदूर क्यों चढ़ता है। उन्होंने बताया जब भगवान श्रीराम लंका जीतकर अयोध्या आए। उनका राजतिलक हुआ। इसके बाद सभी अतिथियों को विदाई दी गई। अंगद को विदा करते समय भगवान श्रीराम की आंखों में आंसू आ गए, परंतु हनुमानजी को जाने की अनुमति देने की उन्होंने हिम्मत नहीं दिखाई। अत: हनुमानजी वहीं रह गए। विदा करने के बाद जब सब लोग महल में पहुंचे तो जब हनुमानजी भी उनके साथ महल में लौट आए। लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सहित सभी लोग चकित थे, कि हनुमानजी अयोध्या से किष्किंधा जाने के लिए रवाना नहीं हुए, लेकिन सभी चुप थे। इसके बाद भगवान श्रीराम ने कहा कि सभी लोग अपने-अपने कक्ष में जाकर आराम करो। सभी भगवान श्रीराम की आज्ञा पाकर चल दिए लेकिन हनुमानजी वहीं डटे रहे। चलते हुए शत्रुघ्न, हनुमानजी से बोले- आप भी चलिए। इस पर हनुमानजी बोले- यहां सीताजी भी तो हैं, इन्हें भी चलने के लिए कहो। इस बात पर शत्रुघ्न ने हनुमानजी को समझाया कि वे भगवान श्रीराम के पास ही रहेंगी, क्योंकि उनकी मांग में इनका सिंदूर है। हनुमानजी ने कहा इतनी-सी बात, और वे वहां से चले गए। इसके बाद अयोध्या में उथल-पुथल मच गई। अयोध्या में जितनी भी दुकानें थीं, सबसे सिंदूर गायब हो गया। हनुमानजी की शिकायत लेकर सुबह व्यापारी अपने महाराजा श्रीराम के पास पहुंचे और बताया कि रातभर हनुमानजी ने पूरी अयोध्या में उथल-पुथल मचाई और सभी दुकानों से सिंदूर ले लिया। भगवान श्रीराम ने सिपाहियों को आज्ञा दी कि हनुमानजी को बुलाया जाए, लेकिन उसी समय सामने से हनुमानजी आते दिखाई दिए, लेकिन उनके पूरे शरीर पर सिंदूर मला हुआ था। वे बोल रहे थे कि अब मुझे मेरे भगवान से कोई अलग नहीं कर सकता। हनुमानजी की अगाध श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति देखकर भगवान श्रीराम की आंखें भर आईं। देखो कपियों में श्रेष्ठ, सकल गुणों के निधान, अतुलित बलशाली, अष्टसिद्धि-नौ निधियों के दाता हनुमानजी भक्ति में डूबकर इतने सरल हो गए कि यह जानकर की सीताजी चुटकीभर सिंदूर लगाकर उनके साथ रहती हैं तो उन्होंने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया, ताकि वे हमेशा श्रीराम के साथ रह सकें। इसके बाद से हनुमानजी को सिंदूर लगने लगा।