शैलेंद्र विष्णु की कविता


मजबूर मजदूर


महाआपदा के आगे है मानवता मजबूर
हाय विवशता लौह पथों पर कटते है मजदूर


हम घर में बैठ सुरक्षित हाय हाय करते
उदर पूर्ति को पराक्रमी कंटक से नहीं सिहरते


अर्थव्यवस्था का पहिया जिनके बल से चलता है
कोरी तनखा बांध पुटलिया और हाथ मलता है


थाम रखी है निर्माणों की बागडोर कंधों पर
छली हुई उम्मीदों और झूठे अनुबंधों पर


कुटिया को वो तरस रहा जो तान रहा अट्टाली
दूजों की वो भरें तिजोरी, खुद के बरतन खाली


शैलेंद्र विष्णु



https://youtu.be/iQr8xA3HiS4