।।मां।।
सुमन और सुगंध का द्वितीय नाम है मां
जीवन की प्रदाता अद्वितीय धाम है मां
स्वार्थ में लिपटे, अनुबंध पथ चलते
सारे संसार में केवल निष्काम है मां
सबके हैं अपने पृथक पृथक गुणा भाग
बिना प्रश्न तालिका शुद्ध परिणाम है मां
संतान के संकटों के पर्वतों को रौंद दे
समस्याओं के अश्व की लगाम है मां
मीठे की आस में मिमियाती औलादें
कुछ खट्टी - कुछ मीठी आम है मां
स्वर्ण की लंका की कामनाओं से घिरे
हम रावण- सी आत्मा पर राम है मां
शैलेंद्र जोशी