भक्तों की इच्छा से ही होता है भगवान में इच्छा का प्राकट्य
-शंकराचार्य मठ इंदौर के प्रभारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज के प्रवचन
इंदौर। भगवान में सांसारिक जीवों की समान कोई इच्छा नहीं होती। वे हमेशा अपने स्वरूप में ही रमे रहते हैं। उनकी दृष्टि में कोई दूसरा है ही नहीं। संसार का समूचा विस्तार उनका अपना ही है और उनकी अपनी ही लीला है। उनमें इच्छा का प्राकट्य भक्तों की इच्छा से होता है।
ज्योतिष एवं द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती के प्रतिनिधि एवं शंकराचार्य मठ इंदौर के प्रभारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने यह बात अपने प्रवचन में कही। व्यासपीठ का पूजन शंकराचार्य भक्त मंडल के पं. राजेश शर्मा, जीतू बिजोरिया, ऋषभ बिलोनिया, कोमल पटेल आदि ने किया।
भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए प्रकट होते हैं भगवान-
महाराजश्री ने बताया जब भक्त लोग जगत की रक्षा के लिए उन्हें पुकारते हैं, जब भक्त भगवान को उनकी लीला को प्रकट रूप में देखना चाहते हैं, स्वयं उनकी लीला में सम्मिलित होकर उसका आनंद लेना चाहते थे और भगवान की प्रत्यक्ष सेवा करके अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं, तब कल्पतरु स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए उनके बीच प्रकट होते हैं। इस तरह भगवान उनकी एक-एक लालसा पूरी करते हैं। जगत का कल्याण ही भगवान का अवतार है। भक्तों की लालसा ही भगवान की लीला है। उनकी दृष्टि में दूसरे की सत्ता ही नहीं है।
भगवान एक भी हैं और अनेक भी
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया भक्त, भगवान से चाहे जो करा ले, पैर धुलवा ले, माखन चोरी करवा ले, चीर हरण करवा ले, झूठ बुलवा ले, भगवान अपने भक्तों के लिए सब कुछ करने को निरंतर तत्पर रहते हैं। वे स्वयं इच्छामुक्त हैं, लेकिन भक्तों की इच्छा ही उनकी इच्छा है। भगवान श्रीकृष्ण एक भी हैं और अनेक भी। वे ही गोकुल में रहकर गोपियों से साथ विहार करते हैं और वे ही वैकुंठ में रहकर सारे जगत की रक्षा करते हैं। वे ही नर-नारायण के रूप में रहकर अपनी तपस्या से संसार को धारण करते हैं। जो भगवान के सच्चे प्रेमी हैं, उन्हें सभी रूपों में अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं।