शास्त्रोक्त संस्कृति की उपेक्षा का परिणाम है लॉकडाउन
- शंकराचार्यजी के सुशिष्य ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानन्द महाराज ने बताया रामचरित मानस की चौपाइयों का आज के संदर्भ में अर्थ
इन्दौर। सनातन धर्म की सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्...जैसी शास्त्रोक्त संस्कृति की निन्दा और उपेक्षा करने वालों के लिए गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में स्पष्ट लिखा है कि लालची और अधिक धन का मोह रखने वाले मूर्ख मानव होते हुए भी चमगादड़ की तरह हैं। ये दुष्ट उस विनाशकारी ओले की तरह हैं, जो खेत की लहलहाती फ़सलों को नष्ट कर स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
श्रीराम चरित मानस की वायरल हो रही चौपाइयों को आज के इस महामारी के दौर से जोड़कर देखें तो वे सार्थक दिखाई देतीं हैं।
द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के शिष्य डॉ. गिरीशानन्द महाराज ने श्री रामचरित मानस की उत्तरकांड की चौपाइयों के भावार्थ को स्पष्ट किया है।
इसी तरह तुलसीदास ने कहा- पर संपदा बिनासि नसाहीं जिमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं...। आज पूरी दुनिया की निर्दोष जनता ऎसे ही मूर्खों के द्वारा दूसरे देशों की सम्पति हडपने और जैविक हथियार बनाकर उन्हें नुकसान पहुंचाने की राक्षसी प्रवृत्ति का दंश सहन कर रही है। tulsidaasji ने यह भी कहा है - सकल ब्याधिन्ह कर मूला तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहुसूला... और काम बात कफ़ लोभ अपारा क्रोध पित्त नित छाती जारा...मतलब दूसरे को अपनी ताकत दिखाकर अर्थ व्यवस्था, भोगोलिक विकास और अस्त्र शस्त्र की जुटाने का यह भयानक रोग ही जीव जन्तुओं के विनाश का कारण बन रहा है और लोगों को लाकडाउन में भी शान्ति नहीं मिल रही है...। एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि पीडहि...और संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि...
महाराज श्री ने कहा कि उत्तर कांड में श्री कागभुषुन्ड जी गरुड़ जी को बताते हैं की अग्यान से देवी देवताओं और वेद की निन्दा करने और मोह अर्थात् लालच व अधर्म करने वाले ऎसे असाध्य रोगों से ग्रसित हो जाते हैं, जिनका उपचार भगवान श्री राम की कृपा से ही संभव है । राम कृपा नासहिं सबरोगा जौं ऎहि भाँति बनै संजोगा, सदगुर बैद बचन बिस्वासा संजम यह न विषय कै आसा... यानी दुष्ट प्रकृति के लोग न तो भगवान को मानते हैं और न डाक्टरों को साधु संतॊं की भी हत्या करने का पाप किये जा रहे हैं।