शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाराज


वर्तमान काल में श्रीहनुमदुपासना की आवश्यकता
- अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाराज


आज भारतमें अर्थ-कामके धर्म-नियन्त्रित न होनेसे अमर्यादित एषणाएँ पल्लवित, पुष्पित एवं फलित हो रही हैं। आबाल-वृद्ध नर-नारी कामाचार, अभक्ष्यभक्षण आदि प्रवृत्तियोंमें फँसकर-विमोहित होकर व्यक्ति, समाज, देश एवं राष्ट्रके प्रति अपने कर्तव्यसे परिभ्रष्ट हो रहे हैं। जहाँ थोड़ी-बहुत धार्मिकता एवं आध्यात्मिकताके अंश विद्यमान भी हैं, वहाँ भी उनके आवरणमें दम्भ, पाखण्ड आदि दुष्प्रवृत्तियाँ कार्य कर रही हैं। इस विषम विमोहक दुःस्थितिमें अञ्जनी-नन्दन, केसरी-कुमार बालब्रह्मचारी श्रीहनुमानजीकी उपासना परमावश्यक है। क्योंकि उनके चरित्रसे हमें ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन, चरित्र-रक्षण, बल-बुद्धिका विकास, अपने इष्ट भगवान् श्रीरामके प्रति अभिमानरहित दास्य-भाव आदि गुणों की शिक्षा प्राप्त होती है।


'देवो भूत्वा देवं यजेत्'-यह उपासना का मुख्य सिद्धान्त है और इसका 'उप' अर्थात् समीप, 'आसना' अर्थात् स्थित होना अर्थ है। जिस उपासना द्वारा अपने इष्टदेवमें उनकी गुण-धर्म-रूप शक्तियोंमें सामीप्य-सम्बन्ध स्थापित होकर तदाकारता हो जाय, अभेद-सम्बन्ध हो जाय, यही उसका तात्पर्य एवं उद्देश्य है।


आजकी इस विषम परिस्थितिमें मनुष्यमात्रके लिये, विशेषतया युवकों एवं बालोंके लिये भगवान् हनुमानकी उपासना अत्यन्त आवश्यक है। हनुमानजी बुद्धि-बल-वीर्य प्रदान करके भक्तोंकी रक्षा करते हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस आदि उनके नामोच्चारण मात्रसे ही भाग जाते हैं और उनके स्मरण मात्रसे अनेक रोगों का प्रशमन होता है। मानसिक दुर्बलताओंके संघर्षमें उनसे सहायता प्राप्त होती है। गोस्वामी तुलसीदासजीको श्रीरामके दर्शनमें उन्हींसे सहायता प्राप्त हुई थी। वे आज भी जहाँ श्रीराम-कथा होती है, वहाँ पहुँचते हैं और मस्तक झुकाकर, रोमाञ्च-कण्टकित होकर, नेत्रोंमें अश्रु भरकर श्रीराम- कथाका सादर श्रवण करते हैं। इस प्रकार वे भगवद्भक्तोंमें अव्यक्तरूपसे उपस्थित होकर उनकी भक्ति-भावनाओंका पोषण करते हैं। आज भी अधिकांश भक्तोंको उनके अनुग्रहका प्रसाद मिलता है। अतः उनकी कृपाकी उपलब्धिके लिये शास्त्रोंमें प्रतिपादित उपासना-पद्धतिके अनुसार, जिसमें श्रीहनुमदुपासना विस्तारसे वर्णित है, उपासनामें संलग्न होनेसे अनेक प्रकारकी लौकिक- पारलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। भारतको समुन्नत बनानेके लिये भौतिक क्षेत्रमें भी अनेक कार्य किये जा रहे हैं, किंतु जितना आध्यात्मिक पक्ष पर बल दिया जाना चाहिये, उतना नहीं दिया जा रहा है। फलत: भौतिक समृद्धि मनुष्यके लिये वरदान न बनकर अभिशाप होने जा रही है। ऐसी परिस्थितिमें राष्ट्रको जिस आदर्शकी आवश्यकता है, वह मूर्तिमान् होकर हनुमच्चरित्रमें उपलब्ध होता है। हनुमानजी भगवत्तत्त्वविज्ञान, पराभक्ति और सेवाके ज्वलन्त उदाहरण हैं। विचारोंकी उत्तमताके साथ भगवदनुरक्ति और सेवा व्यक्तित्वके पूर्ण विकासकी द्योतक हैं, जो हनुमानजीके चरित्रमें देखी जा सकती हैं। भारतके भटकते हुए नवयुवकोंको हनुमानजीसे बहुत बड़ी प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। हनुमानजी बालब्रह्मचारी हैं। उनके ध्यान एवं ब्रह्मचर्यानुष्ठानसे निर्मल अन्त:करणमें भक्तिका समुदय भली प्रकार होता है। हनुमानजीके चरित्रमें शक्तिसंचय, उसका सदुपयोग, भगवद्भक्ति, निरभिमानिता आदिका पूर्ण विकास होनेके कारण उनकी आराधनासे इन गुणोंकी उपलब्धि साधक युवकों एवं बालकोंको भी हो सकेगी।


संकलित - क्षेत्रज्ञ
श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप, गुजरात
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- क्षेत्रज्ञ
(श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप,गुजरात)