डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया भयमुक्त रहने का उपाय


 


दैहिक दैविक भौतिक तापों से भयमुक्त करता है सनातन धर्म
-डॉ. गिरीशानंद महाराज
प्रभारी, शंकराचार्य मठ, इंदौर 
मोबाइल नंबर - 9827394614


धर्मो रक्षति धर्म:... जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं हो जाती है। सनातन धर्म पूर्णत: भारतीय जीवनशैली पर आधारित है। जिसका संबंध सीधे व्यक्ति के स्वास्थ्य से और उसके सुखमय जीवन से है। जीवन संग्राम से जूझने की कला सिखाता है भारतीय सनातन धर्म। राम चरित मानस में भी कहा गया है- दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं ब्यापा...। यानी जो भगवान राम के आदर्शों का पालन करता है, उसमें तीनों ताप (ब्याधियां) व्याप्त नहीं होते और व्यक्ति हर तरह से भयमुक्त हो जाता है।
संसार को समुद्र की उपमा दी गई  है। कहा जाता है भव सागर, भव अर्थात संसार और सागर का अर्थ है समुद्र। सागर और संसार में काफी समानताएं हैं। सागर में उथल-पुथल होती रहती है, कभी उसकी लहरें आसमान को छूती दिखाई देती हंै तो कभी उनका पता ही नहीं चलता कि कहां चली गईं। ठीक इसी तरह संसार में भी उथल-पुथल होती रहती है, यह भी एक जैसा नहीं रहता। इसमें भी परिवर्तन होते रहते हैं। सागर का जल जितना स्वच्छ और निर्मल दिखाई देता है, स्वाद में वह वैसा नहीं होता। यह संसार भी जैसा आकर्षक दिखाई देता है, अनुभव में वह वैसा नहीं है। सागर का आकर्षण अपनी ओर खींचता है, स्वच्छ जल अपनी ओर आकर्षित करता है, पर जब हम उसका जल पीते हैं तो आशा, निराशा में बदल जाती है। संसार के सागर में भी यही होता है। संसार एवं सागर में अगर कुछ नहीं बदलता है तो उसका बदलना ही नहीं बदलता है। जिस तरह सागर के जल के स्वाद में खारापन ही हाथ लगता है, उसी तरह संसार के क्षणिक सुख के बाद खारापन या कड़वाहट ही नजर आती है। हम सागर के जिस तट पर खड़े होते हैं वह तट तो हमें दिखाई देता है लेकिन दूसरी ओर का तट दिखाई नहीं देता, ठीक इसी तरह संसार में हमें जन्म तो दिखाई देता है लेकिन मृत्यु दिखाई नहीं देती। सागर का संबंध चंद्रमा से हेै, चंद्रमा की पूर्णता होने पर ज्वार आ जाता है, समुद्र का उतार-चढ़ाव चंद्रमा से जुड़ा है। संसार का संबंध मन से जुड़ा है और मन के देवता चंद्रमा हैं। इस तरह चंद्रमा का संबंध सागर की उथल-पुथल से है और मन का संबंध संसार की उथल-पुथल से। इसलिए कहा गया है- मन के हारे हार है मन के जीते जीत... मन को संसार से हटाकर ईश्वर में लगाएं आप भय मुक्त हो जाएंगे।
जब शंकरजी की बारात मैनाजी के घर पहुंची तो सब लोग डर गए और लोगों ने अपने घर के द्वार बंद कर लिए। देवताओं ने पूछा प्रभु ये आपको देख भयभीत क्यों हो गए? भगवान ने कहा ये हमसे नहीं डरे, ये हमारे शरीर से लिपटे सांपों को देख डरे हैं। यदि ये हमें देख लेते तो इनका डर ही समाप्त हो जाता है और ये लोग जीवन-मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते। सांप काल है और हम महाकाल हैं। इसी तरह भगवान के श्रीचरणों में अपना मन लगाएं और सनातनी नियमों का पालन करें तो आप भयमुक्त हो जाएंगे।
सनातन संस्कृति का निर्वाह करते हुए प्रात: स्नान कर सूर्य को जल चढ़ाएं। इससे उसकी अल्ट्रावायलेट किरणें शरीर पर पड़ती हैं, जिससे विटामिन डी मिलता है। विटामिन डी से हड्डी के रोग नहीं होते।  फिर तुलसी पर जल चढ़ाएं, इस दौरान उसके पौधे से वाष्प उड़ती है, जिसके साथ उसके रोगप्रतिरोधक अणु हमारी सांस में जाते हैं और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। गाय के घी का दीपक जलाने से वातावरण प्रदूषण मुक्त हो जाता है। ध्यान लगाने से मानसिक शांति मिलती है और इन सबसे व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है। वैशाख के माह में दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है और इससे शांति मिलती है और व्यक्ति जीवन संघर्ष से जूझने की शक्ति प्राप्त होती है और वह निर्भय हो जाता है। इसी तरह हमारे सभी धार्मिक विधान विज्ञान सम्मत हैं। इन विधानों को अपनाने से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से भयमुक्त हो जाता है। 
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